कभी श्याम सुंदर,
मिलो हमसे आकर,
दीवाना किया क्यों,
नज़रे मिलाकर।।
ना मिल पाओ अगर तो,
करो विनती पुरी,
मिला लो मुझे,
खुद में सांसे बनाकर,
कभी श्यामसुन्दर,
मिलो हमसे आकर।।
जहां तुम हो रहते,
जहां वो जहां है,
वहीं एक दिन देख लें,
तुमको आकर,
कभी श्यामसुन्दर,
मिलो हमसे आकर।।
नजर से तुम्हारी,
नजर मिल गई जब,
परेशान ‘अंकुश’,
ये नज़रे मिलाकर,
कभी श्यामसुन्दर,
मिलो हमसे आकर।।
शहर के शहर अब,
तबाह फिर से होंगे,
कहर ढा दिया है,
फिर से तुमने मुस्कुराकर,
कभी श्यामसुन्दर,
मिलो हमसे आकर।।
कभी श्याम सुंदर,
मिलो हमसे आकर,
दीवाना किया क्यों,
नज़रे मिलाकर।।
स्वर – श्री अंकुश जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202