आरती असुर निकंदन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
ज्ञान के सागर है हनुमंत,
पड़े पद युगल उपासक संत,
कमल हिय राजै सिय-भगवंत,
परमप्रिय भक्त शिरोमणि की,
पवनसुत केसरी नंदन की,
आरती असुर निकन्दन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
सीय-रघुवर के तुम प्यारे,
साधु-संतन के रखवारे,
असुर कुल के तुम संहारे,
परम बलवान शिरोमणि की,
पवनसुत केसरी नंदन की,
आरती असुर निकन्दन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
बुद्धि बल विद्या वारिधि तुम,
बिगड़े सब काज सवारे तुम,
विभीषण के रखवारे तुम,
परम ज्ञानी विज्ञानी की,
पवनसुत केसरी नंदन की,
आरती असुर निकन्दन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
सिया के बिगड़े संवारे तुम,
राम सेवा मतवाले तुम,
लखन के रखवाले हो तुम,
समर्पित त्यागी दानी की,
पवनसुत केसरी नंदन की,
आरती असुर निकन्दन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
धनुर्धर पूजक-पूज्य हो तुम,
सखे गोविन्द के प्यारे तुम,
युद्ध में ध्वज रखवारे तुम,
परम रक्षक बलिदानी की,
पवनसुत केसरी नंदन की,
आरती असुर निकन्दन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
आरती असुर निकंदन की,
पवनसुत केसरी नंदन की।।
लेखक एवं गायक – डॉ गोविंद देवाचार्य जी महाराज।
( पूज्य बाबा श्रील) +91 9709914966