नर तू छोड़ दे मान गुमान ने,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
बालकपन में सोया,
जवानी मोह वस होया,
अन्त बुढ़ापे रोया रे,
जद खोदी सार रति को,
नर छोड दे मान गुमान न,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
तू करले काम भलेरा,
फिर कुछ बिगड़े ना तेरा,
एक दिन होज्या जंगल में डेरा,
काया छौड़ चल्यो जगती को,
नर छोड दे मान गुमान न,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
क्यों गर्व करे तुं गैला,
तेरा झुटा जाल झमेला,
ॠषि-मुनी देग्या हेला रे,
मत भूलो जगत पति को,
नर छोड दे मान गुमान न,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
आ मिथ्या मान बड़ाई,
माया रे ज्या धरी धराई,
गुरु लुम्बानाथ सहाई रे,
बलवन्त चरनन भक्ति को,
नर छोड दे मान गुमान न,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
नर तू छोड़ दे मान गुमान ने,
शुद्ध करले तोरी मती को।।
गायक – समुन्द्र लौट चेलासरी।
मो. – 8107115329
लेखक – बलवन्त सिंह लौट चेलासरी।








