बांके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
मेरी छुटी दुनियादारी,
मेरी छुटी दुनियादारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
बाँके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे।।
दर्द की मारी मैं तो दर-दर भटकूं,
वृंदावन की कुंजो में गली-गली डोलूं,
मैं तो भटकूं मारी मारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
मेरी छुटी दुनियादारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
बाँके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे।।
तुम बिन पिया मोहे कछु नहीं भावे,
रेह रेह पिया तेरी याद सतावे,
मैं तो रंग में रंगिया सारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
बाँके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे।।
बली बली जाऊं तेरी तिरछी अदा पे,
लुट गई लुट गई तेरी बांकी छटा पे,
तेरे नेह में सब कुछ हारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
बाँके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे।।
बांके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
मेरी छुटी दुनियादारी,
मेरी छुटी दुनियादारी,
की अब कहीं दिल ना लगे,
बाँके मोहन से हो गई मेरी यारी,
की अब कहीं दिल ना लगे।।
स्वर – श्री संजय कृष्ण सलिल जी।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202