मेरे राम मुझे अपना लेना,
दुखी दीन को दास बना लेना।।
ठोकरें खाई बहुत,
झूठे जगत के प्यार पर,
इसलिए आये है सीतापति,
तुम्हारे द्वार पर,
अब मुझे तारो ना तारो,
यह तुम्हारे हाथ है,
गर ना तारोगे तो,
बदनामी तुम्हारी नाथ है,
जरा नाम की लाज बचा लेना,
मेरे राम मुझें अपना लेना,
दुखी दीन को दास बना लेना।।
नीच गणिका गज अजामिल,
की खबर ली आपने,
भक्ति द्वारा भीलनी भी,
मुक्त कर दी आपने,
भक्त कितने आप पर,
जीवन निछावर कर गए,
नाम लेकर आपका,
पापी हजारों तर गए,
उन्हीं अधमों के साथ मिला लेना,
मेरे राम मुझें अपना लेना,
दुखी दीन को दास बना लेना।।
काम क्रोधादिक लुटेरों,
का हृदय में वास है,
पातकों का बोझ है,
अधमों की संगति पास है,
पवन माया की चली है,
भ्रम भंवर रहता साथ है,
बीच भवसागर में बेड़ा,
‘बिन्दु’ का बहता नाथ है,
मुझे धार के पार लगा लेना,
मेरे राम मुझें अपना लेना,
दुखी दीन को दास बना लेना।।
मेरे राम मुझे अपना लेना,
दुखी दीन को दास बना लेना।।
रचना – बिंदु जी महाराज।
स्वर – रमेश जी दाधीच।