निर्धन की रामरमी,
लेले दादा खेड़े,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
हल्दी का तिलक करूं,
लिए मान इसे चंदन,
स्वीकार करो स्वाम,
चरणों में मेरा वन्दन,
दयावान दया करकै,
तुम पार करो बेडे़,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
तू जाणै स दादा,
सब की लाचारी न,
मनै सुणी तू अपणावै,
निशछल पुजारी न,
अपणे ऊपर झेल्लै,
भगतां के उलझेडे़,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
पंछी बणकै मनवा,
मेरा डोल्लै तेरे आग्गै,
तेरी चौखट की माटी,
मनै सोने सी लाग्गै,
तेरे दर के लाउं सूं,
दिन म कईं कईं गेडे़,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
तेरी बगिया का भंवरा,
यो गजेन्द्र कुड़लणीया,
लक्की शर्मा न भी तेरा,
शरणा आण लिया,
ना दूर कदे करीऐ,
तू रखिए सदा नेडे़,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
निर्धन की रामरमी,
लेले दादा खेड़े,
श्रद्धा के फूल देऊँ,
ना भोग म्ह पेड़े।।
गायक – लक्की शर्मा पिचौलिया।
लेखक – गजेन्द्र स्वामी कुड़लणीया।
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