राघव ललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
नवरा जीव चरण अरुणाय,
खेलन बिनु पग परे अकुलाय,
नीरज नयन मोद मंगल अयन,
लाल तेरी मैं ले लूँ बलाए,
राघवललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
रवि कर उदित शीश नहिं छाही,
बदन निरखि सर सीज सकुचाय,
सूरज किरण पड़े अधरन जले,
क्यों मुखड़ा नहीं कुम्हलाय,
राघवललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
लालन यहीं आंगन मिल खेलो,
कल बल बचन तोतरे बोलो,
चितवन चपल चाल मंजुल बचन,
देखि शुषमा सरस तरसाए,
राघवललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
खेलन को अब दूर ना जाओ,
ठुमक ठुमक पग नाच दिखाओ,
सुन्दर सुवन जिन बरसे सुमन,
आज कौशल्या बलि बलि जाय,
राघवललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
राघव ललन तेरे कोमल चरण,
कहीं कंकरिया गढ़ी नहीं जाय।।
स्वर – मिश्रा बंधू।
प्रेषक – अजय सिंह।
9829111848