थारे सिर पर घूम रहयो काल,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
सुता सुता क्या करे रे,
सुता आवे नींद,
काल सिराहने आए खडो रे,
ज्यों तोरण आयो बिंद,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
सोने री लंका बनी रे,
सोने रा घरबार,
रति एक सोना मिल्यो नहीं,
रावण मरती रे वार,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
धवन फूंक से बह गया रे,
ठंडा पड़ा अंगार,
अरड्ड थंब का मिट गया,
लद गया लाल लवार,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
मुट्ठी बंद कर आया जगत में,
यूँ हाथ पसारे जाए,
कहत कबीर सुनो भाई संता,
काल सभी ने खाय,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
थारे सिर पर घूम रहयो काल,
गाफल में बीरा कई रे सूतो।।
स्वर – रामनिवास जी राव।
प्रेषक – महेश चौहान।
9602627273