श्री पितरजी चालीसा,
दोहा – सबसे पहले पूजे जाते,
जग में दोनों देव,
एक तो श्री गणपति प्रभु,
दूजे पितर देव।
छोड़ गए जो दुनिया को,
रहते हरदम पास,
नमन करूँ उन पितरों को,
दिल में जिनका वास।
जय जय जय पितरजी देवा,
सदा करुं चरणों की सेवा।
हाथ जोड़कर ध्यान धरूं मैं,
पितरों का सम्मान करुं मैं।।1।।
चौदस मावस पूजे जाते,
दीप जलाते धोक लगाते।
वस्त्र, नारियल भेंट चढ़ाते,
पितरों की जयकार लगाते।।2।।
चरण पादुका रूप में वंदन,
आरती भजन करुं अभिनंदन।
देशविदेश जहां भी रहूं मैं,
कृपा आपकी पाता रहूं मैं।।3।।
पितरों की किरपा हो जिनपे,
रोज दिवाली रहती उनके।
चाहे हो कोई भी जाती,
पितरों को सारी दुनिया मनाती।।4।।
कार्य सिद्ध का एक ही मंतर,
सबसे पहले घर का पित्तर।
नित उठ सिमरूं नाम आपको,
ॐ पितृ देवतायै नमः जापको।।5।।
श्राद्ध पक्ष पित्तर त्योंहार,
घर बनजाता पित्तर द्वार।
आपके नाम से ब्राम्हण जिमाते,
काग श्वान गौ ग्रास खिलाते।।6।।
एक एक पल जो संग गुजारे,
वो थे सुनहरे दिवस हमारे।
मेलजोल और प्यार तुम्हारा,
याद है आता साथ तुम्हारा।।7।।
कोई जरूरतमंद जो पाऊं,
आपके नाम से उसे खिलाऊं।
कहीं लक्ष्य से भटक न जाऊं,
कृपा हो आगे बढ़ता जाऊं।।8।।
कभी कभी जाने अंजाने,
पितृदोष बनता सब जाने।
अकस्मात या अधूरी ईच्छा,
गर ना हुई हो मृत्यु स्वेच्छा।।9।।
पितृदोष इन्ही कारण बनता,
दानधर्म पिंडदान से टलता।
पितरों का यदि ऋण हो चुकाना,
पीपल सींचो वंश बढ़ाना।।10।।
पितृदोष यदि तुम्हे घटाना,
हरे भरे दो पेड़ लगाना।
तर्पण दान श्राद्ध करवाते,
शुद्ध जल से खुश हो जाते।।11।।
शादी सगाई जन्मोत्सव में,
पित्तर जरूरी हर उत्सव में।
गृहप्रवेश और शुभमुहूर्त में,
पित्तर पूजो हर सूरत में।।12।।
मैं नादान हूँ शरण तुम्हारी,
हरदम रखना लाज हमारी।
जिनके पितर सुखमय होई,
उनका काम रुके ना कोई।।13।।
नजर आपकी जो पड़ जाए,
दामन के कांटे झड़ जाए।
आशीर्वाद बनाए रखना,
सर पे हाथ फिराए रखना।।14।।
कभी किसी का दिल न दुखाऊं,
सत्कर्मो का पुण्य कमाऊं।
ना कमजोर बनूँ ना रोगी,
रखो मेरा परिवार निरोगी।।15।।
विमुख आपसे कभी न होऊं,
सुख से जागूं निर्भय सोऊं।
भूल चूक हमसे हो जाए,
आप कभीभी क्रोध न लाएं।।16।।
मीठी नजर बनाए रखना,
दयादृष्टि बरसाए रखना।
भूल जाऊं मैं सर को झुकाना,
आप कभी मुझको न भुलाना।।17।।
मेरे सब अपराध भुलाना,
अपना समझके प्यार लुटाना।
भले बुरे का ज्ञान मुझे दो,
भगती का वरदान मुझे दो।।18।।
दान धर्म करवाते रहना,
उचित मार्ग बतलाते रहना।
कृपा करो सक्षम हो जाऊं,
आपके नाम से भवन बनाऊं।।19।।
नतमस्तक हो महिमा गाऊं,
अगली पीढ़ी को भी बताऊं।
कृपा चालीसा जब जब गाऊं,
आपको अपने सन्मुख पाऊं।।20।।
दोहा – श्री पितर चालीसा,
पढ़े सुने जो कोय।
अम्बरीष कहता उन भग्तों के,
घर में मंगल होय।।
लेखक – अम्बरीष कुमार मुंबई।
9327754497
गायक – सुदर्शन कुमार।