श्री हरीराम चालीसा,
दोहा – गजानन्द श्री विघ्न हरण,
गौरी पुत्र गणेश,
धांने पहले सुमरिया,
कटे कोटि बलेश।
मात सरस्वती आय कर,
हृदय बैठो आज,
की हरि चालिसा मैं भण,
रखिये म्हारी लाज।
नमऊं श्री हरीबाबा ब्रह्मचारी।
नमो नमो भक्तजन हितकारी॥1॥
हे हरिराम झौरड़े वाला।
डरे आप रे विषधर काला॥2॥
रामनारायण सुत हरीरामा।
तुमको बार-बार प्रणामा॥3॥
चमत्कार बचपन में कीन्हा।
बाल ब्रह्मचारी व्रत लीन्हा॥4॥
नियम चौरासी तुमने पाले।
सर्प दंश के झाड़ने वाले॥5॥
सांप का काटा रोता आवे।
हरि कृपा से हंसता जावे॥6॥
जयपुर जोधाणु बीकाणा।
चाले हरीराम का बाणा॥7॥
कियो नागौर को नाम उजागरा।
नमऊं झौरड़े का झाड़ागरा॥8॥
सभी दायमा द्वार बुलाया।
जात भाईयों को समझाया॥9॥
गांव झौरड़ा के मिनखां ने।
हरि बुलाया है समझाने॥10॥
किन्ही हरि कुच की त्यारी।
समझ नहीं पाया नर-नारी॥11॥
हरी सुणावे अमृत वाणी।
मोह माया धन आणी जाणी॥12॥
गुरु बताई थी जो वाणी।
दूणी चौगुणी हरि बखाणी॥13॥
गुरु से दो पग आगे दीन्हा।
तब गुरु लागा हृदय से लीना॥14॥
लगा समन्धा लिया बसाई।
हरि बाबे एक बताई॥15॥
बने समाधि कुबे पासा।
इतरो कह हरि खींचा सासा॥16॥
हुयो गांव में हाको भारी।
छोड़ चल्यो सबने ब्रह्मचारी॥17॥
सबसे मिल यूं बात विचारी।
हरि बाबा था तपधारी॥18॥
हरि बाबा की बात न मानी।
श्मशाण ले गया अज्ञानी॥19॥
तब हरि अपणो तेज बतायो।
सर्पो हन्दा, जाल बिछायो॥20॥
घर पर बिच्छु, सांप घणेरा।
गांव को आफत ने घेरा॥21॥
ततना बिच्छु बाढ़ सांपारी।
कभी नहीं देख्या नर-नारी॥22॥
एक बात सबके मन मांही।
सांप घणा पण खावे नाही॥23॥
सब मिल कहते त्राहि मामा।
जय जय देव बड़े हरिरामा॥24॥
हे ब्रह्मचारी ब्रह्म समाना।
तुमको कोटि कोटि प्रणामा॥25॥
इंसा जिसे सर्प विषधारी।
तिनकी करो सहाय प्रभु भारी॥26॥
कहते हरि सर्प नही खायो।
मनुज अरे नाहक डरपायो॥27॥
बस इतनी ही देर लगाई।
पलक झपता पीड़ा मिटाई॥28॥
बकरी को जब इस गयो विषघर।
जाट की बेटी कांपे थर-थर॥29॥
तांती बांध फाइ चुन्दड़ी।
मरता- मरता जी गई बकरड़ी॥30॥
सेठाणी पीड़ा सू पीड़ित।
अब मरयोड़ी ने कीन्ही जीवित॥31॥
मघाराम ब्राह्मण की नारी।
काल इस गयो विषधर भारी॥32॥
सत्रह दिन से प्राण गंवाया।
हरि सुमरि नव जीवन पाया॥33॥
इण विध बाबा परचा दीन्हा।
पे पास धाम कर दीन्हा॥34॥
मांगीलाल भाई सेवा कीन्हा।
जन्म-मरण से मुक्ति दीन्हा॥35॥
सुदी पांचम को मेला भरता।
दुखियों का सब दुख हरता॥36॥
तांती बांध भभूत लगावे।
सर्पदंश ताको मिट जावे॥37॥
कलयुग में बाबा अवतारी।
इनकी महिमा है अति भारी॥38॥
जो यह पाठ करे मन लगाई।
तिन में होत श्री हरि सहाई॥39॥
गोवर्धन मस्तानो गावे।
हरि चालीसा कण्ठ लगावे॥40॥
दोहा – वैशाख शुद्धि पंचमी वार सोमवार,
थाने प्रगति होय ने समंत 2000॥
गायक – सुनीता स्वामी।
प्रेषक – सुभाष सारस्वा काकड़ा।
9024909170