मुझसा योद्धा मुझसा ज्ञानी,
दोहा – बड़े बड़ाई ना करे,
बड़ा ना बोले बोल,
हीरा मुख से ना कहे,
लाख हमारो मोल।
मुझसा योद्धा मुझसा ज्ञानी,
हुआ ना जग में दुजा रे,
काट काट अपने शीषों को,
मैने शिव शंकर को पूजा रे,
मुझ सा योद्धा मुझ सा ज्ञानी।।
सुर्य चन्द्र नौ लख तारे,
सब चलते है मेरे सहारे,
पूर्व पश्चिम आज्ञा से पधारे,
त्रिभुवन हाक से धुजा रे,
मुझ सा योद्धा मुझ सा ज्ञानी।।
हवा हुकम से ठंडा तांता,
दाणो दले बुढी बेमाता,
इन्द्र जल भरने को आता,
कैलास उठाया मेरी भुजा रे,
मुझ सा योद्धा मुझ सा ज्ञानी।।
लंका कोट समुद्र खाई,
काल बली कैद के माही,
दिगपाल हाजिर रहे याहीं,
मम कुम्भकरण सा अनुजा रे,
मुझ सा योद्धा मुझ सा ज्ञानी।।
मेघनाथ पुत्र बलकारी,
मैं खुद मालिक हूं केवे पवन पुजारी,
बलवन्त राम मति क्यों मारी,
ये बन्दर तुझे ना सुजा रे,
मुझ सा योद्धा मुझ सा ज्ञानी।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो. – 8107115329
प्रेषक – मनीष कुमार लौट।








