मेरा गोपाल गिरधारी,
जमाने से निराला है,
रंगीला है रसीला है,
ना गोरा है ना काला है।।
कभी सपनों में आ जाना,
कभी रूपोश हो जाना,
यह तरसाने का मोहन ने,
निराला ढंग निकाला है।।
कभी वो रूठ जाता है,
कभी वो मुस्कुराता है,
इसी दर्शन की खातिर तो,
बड़े नाजो से पाला है।।
मजे से दिल में आ बैठो,
मेरे नैनो में बस जाओ,
अरे गोपाल मंदिर यह,
तुम्हारा देखा भाला है।।
कहीं उखल से बंद जाना,
कही ग्वालो के संग आना,
तुम्हारी बाल लीला ने,
अजब धोखे में डाला है।।
मेरा गोपाल गिरधारी,
जमाने से निराला है,
रंगीला है रसीला है,
ना गोरा है ना काला है।।
स्वर – श्री कृष्णचन्द्र ठाकुर जी महाराज।








