काँटों लागो रे सत्संग में,
दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी में पुनि आध,
तुलसी सतसंग संत की,
कटे करोड़ अपराध।
तपस्या बरस हजार की,
और सतसंग की पल एक,
तो ही बराबर नहीं तुले,
मुनि सुखदेव किया रे विवेक।
काँटों लागो रे सत्संग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
संत वृक्ष शब्द निज काँटों,
बिखरयो सत्संग रात,
वो दिल चुभ गयो और अंदर,
खटक भयो विख्यात,
कांटो लागो रे सतसंग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
ध्रुव के लाग्यो प्रह्लाद के लागो,
नरसी मीरा रे साथ,
सही सुलतान भरतरी लागो,
छोड़ राज वन जात,
कांटो लागो रे सतसंग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
गणिका लागो गोपीचंद लागो,
करमा बाई रे साथ,
सैन भगत रे ऐसो लागो,
रटे दिन और रात,
कांटो लागो रे सत्संग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
नैणा नींद नहीं अन्न जल भावे,
दर्द घणों घबरात,
बीजलदास बण्यो बड़भागी,
और नहीं सु आस,
कांटो लागो रे सत्संग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
कांटो लागो रे सत्संग में,
म्हारे खड़क रह्यो दिन रात।।
गायक – अनिल नागौरी।
प्रेषक – राजू गढ़वाल।
9252692520