बनभोरी आली मैया नै,
झुलाया पलणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
होये बावले फिरया करैं थे,
घुट घुट कै नै मरया करैं थे,
भूलगे थे हँसणा पड़ै था जलणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
डॉक्टर बोले या के जणैगी,
सारी उम्र कदे माँ ना बणेगी,
जगजननी का फेर लिया शरणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
महाराणी न मारे मंत्र,
पड़े कैद में थे खुल गे पीत्र,
भाग म लिखया जो लेख नही टलणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
समय बड़ा बलवान गजेन्द्र,
समय आण पै सभ कुछ दे हर,
ज्यूकर भी चलावै समय पड़ै चलणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
बनभोरी आली मैया नै,
झुलाया पलणा,
आश ना थी खेलण की,
खिलाया ललणा।।
लेखक / प्रेषक – गजेन्द्र स्वामी कुड़लणीया।
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