बजरंग वचन बोले,
रावण तू अभिमानी है,
सिया मात चुराने की,
बड़ी की नादानी है।।
इसे मत समझ नारी,
ये प्रभू की माया है,
ये मात जगत सब की,
जिसे तू हर लाया है,
जो जगत रचे प्रभु,
उनकी महारानी है,
बजरंग बचन बोले,
रावण तू अभिमानी है।।
धन धाम नष्ट होज्या,
बलबुध्दि जात मारी,
सब कुटुम्ब नास होज्या,
जो देखत परनारी,
ये निति वेदों की,
कहते ब्रह्मज्ञानी है,
बजरंग बचन बोले,
रावण तू अभिमानी है।।
क्यो निति विरुद्ध चलता,
तूं मर्यादा पहचान,
विषय रस छोड़कर के,
तूं भजले श्री भगवान,
ये भयंकर गात तेरा,
लंका रजधानी है,
बजरंग बचन बोले,
रावण तू अभिमानी है।।
पवन बुध्दि विपरीत होज्या,
जब आवे किसी का अंन्त,
समझाने से समझे ना,
यूं कहता है बलवन्त,
बजरंग समझाते है,
रावण एक ना मानी है,
बजरंग बचन बोले,
रावण तू अभिमानी है।।
बजरंग वचन बोले,
रावण तू अभिमानी है,
सिया मात चुराने की,
बड़ी की नादानी है।।
गायक – समुन्द्र चेलासरी।
मो. 8107115329
लेखक – बलवन्त सिंह लौट चेलासरी।