जो किस्मत जगत की,
बनावे संवारे,
तो क्यों ना चले हम,
उन्हीं को पुकारे,
यही मंत्र जपते है,
ऋषि संत सारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
नदी में हुई,
ग्राह गज की लड़ाई,
पुकारा था गज ने,
कन्हाई कन्हाई,
तो बृजराज आकर के,
गज को उबारे,
गई आह जब,
रुक्मणि के दुआरे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
है प्रहलाद की,
जानते सब कहानी,
उन्हें होलिका जब,
जलाने की ठानी,
जली होलिका जब,
मुरारी पधारे,
प्रहलाद जपते थे,
अग्नि किनारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
सुदामा थे निर्धन,
प्रभु के पुजारी,
दशा देख कर रो,
दिए थे मुरारी,
सब कुछ मिला उनको,
प्रभु के द्वारे,
और यही मंत्र जपकर वो,
जीवन गुजारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
कहाँ आज तक तू,
भटकता था ‘राही’,
विनय तुम भी बन जाओ,
प्रभु के सिपाही,
उबारेंगे ‘राजन’ को जो,
सबको उबारे,
यही मंत्र जपना है,
रहकर सहारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
जो किस्मत जगत की,
बनावे संवारे,
तो क्यों ना चले हम,
उन्हीं को पुकारे,
यही मंत्र जपते है,
ऋषि संत सारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे,
हरे कृष्ण गोविंद,
मोहन मुरारे।।
स्वर – श्री राजन जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202







