सभी अपने गम से परेशान है,
कोई कम या ज्यादा परेशान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
ना तुम खुद रहोगे ना जमाना रहेगा,
ना तुम खुद रहोगे ना जमाना रहेगा,
सभी चार दिन के मेहमान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
ये रुतबा तुम्हारा उन्हीं से मिला है,
उन्हीं से मिला है उन्हीं से मिला है,
उन्हीं का ये जीवन एहसान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
कोई अपने तन से कोई अपने मन से,
कोई अपने तन से कोई अपने मन से,
कोई बस जलन से परेशान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
जो इमदाद करता सभी की जहां में,
जो इमदाद करता सभी की जहां में,
जन ‘अंकुश’ वही तो इंसान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
ना डरना कभी ग़म के तूफा से अंकुश,
ना डरना कभी ग़म के तूफा से अंकुश,
संभालेगा तुझको वो भगवान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
सभी अपने गम से परेशान है,
कोई कम या ज्यादा परेशान है,
सभी अपने ग़म से परेशान हैं।।
स्वर – श्री अंकुश जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल उज्जैन मध्य प्रदेश।
9926652202