इक घर बना दे माँ,
जिसमें तेरा वास हो,
मैं भी रहूँ माँ उसमें,
तू भी मेरे पास हो।।
तर्ज – इक घर बनाऊंगा।
कमरा हो एक जिसमें,
तेरा माँ बसेरा हो,
चरणों में आपके माँ,
रखा सर मेरा हो,
सर पे माँ मेरे देखो,
सदा तेरा हाथ हो,
मैं भी रहूँ माँ उसमें,
तू भी मेरे पास हो।।
ज्योति जले माँ निशिदिन,
दिन हो या रात हो,
जयकार करते सभी,
मिलके एक साथ हो,
पूर्ण सभी के दिल की,
करना मैया आस हो,
मैं भी रहूँ माँ उसमें,
तू भी मेरे पास हो।।
भक्त तुम्हारा कोई,
घर यदि आये माँ,
खाये प्रसाद तेरा,
भूखा वो जाए ना,
भरना भंडारे जिनका,
कभी नहीं ह्रास हो,
मैं भी रहूँ माँ उसमें,
तू भी मेरे पास हो।।
इक घर बना दे माँ,
जिसमें तेरा वास हो,
मैं भी रहूँ माँ उसमें,
तू भी मेरे पास हो।।
लेखक – राजेन्द्र कुमार “राज”
मोबाइल – 8303026396