अधमों को नाथ उबारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर,
मद खल जनों का उतारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
तर्ज – किसी राह में किसी मोड़ पर।
प्रहलाद जब मरने लगा,
खंजर पे सिर धरने लगा,
उस दिन का खम्भ बिदारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
धृतराष्ट्र के दरबार में,
दुखी द्रौपदी की पुकार में,
साड़ी के थान संवारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
सुरराज ने जो किया प्रलय,
ब्रजधाम बसने के समय,
गिरवर नखों पर धारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
इस जग से ‘बिन्दु’ निराश है,
केवल तुम्हारी आस है,
बिगड़ी दशाएँ सुधारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
अधमों को नाथ उबारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर,
मद खल जनों का उतारना,
तुम्हें याद हो की ना याद हो,
मेरे मुरलीधर मेरे बंसीधर।।
रचना – श्री बिंदुजी महाराज।
स्वर – धन्वन्तरिदास जी महाराज।